Saturday, May 26, 2012

गहरी रातों की निराशा में भी अनन्त गहराई होती है



गहरी रातों की निराशा में भी अनन्त गहराई होती है
वह, शायद, इसलिए कि
मांग बडी अजीब सी होती है.
कहो कि अंधेरे में काश ! यह दुनिया दुल्हन की तरह दिखती
दूर दूर तक बस्ती नहीं
न पेड, न परिन्दे, न नगमा, न कहकहा ..
इस धरती के भूगोल पर अंकित कोई भू-आकृति
अभिधा में जानो तो साँप सूँघ जाए
और जो जानो व्यञ्जना में तो जाए मन गुब्बारा
किन्तु जब भी धरती की गोद बिलखती है
तो ये रातें
दुनिया का चैन हराम कर देती हैं
किसे नहीं भाता -अपना हरा भरा संसार
कौन हुआ तृप्त प्रेम-गंध से ..
गहरी रातों की निराशा -
गौतम को बना सकती है बुद्ध, तुलसी को गोस्वामी
रातें गहराती हैं रोज़ रोज़
लेकिन निर्विघ्न, निर्वाक और निश्चिन्त
कभी नहीं रचा गया ऐसा इतिहास
कि काल ने ग्रस लिया रात को
रातें गहराती हैं
और जीवन तिरने लगता है सतह पर
नहीं मुंद पाने वाली आँखें माँगती हैं रोशनी
और माँगती है सुन्दर काया सत्य की
आँखें, जो पार्थिव शक्ति, भूला करती है अपनी औकात
गहरी रातों को अक्सर करती है निराश
कमजोर, असहाय और भावुक मानव हृदय को
गहरी रातें, जो
चैन है, प्रेम की सेज़ है, साँसों का संगीत है
मृत्यु का अभिनय है .. काल की ओट है ..
गहरी रातें, गहराती जाती हैं, गहराती जाती हैं
मौन टूटता है , तन्द्रा छिन्न भिन्न हो जाती है
अनन्त निराशा
बस थोडी सी थकान में अनूदित हो जाती है !

2 comments:

Onkar said...

gahri raton ki apni shakti hoti hai. sundar kavita

madhurima said...

there's depth in the expressions and they are unfathomable....!