हर प्रसाद गोस्वामी के पास एक ऐसा सर्च-लाइट था
जिसकी बदौलत वे
किसी भी स्थिति में वर्ग-संघर्ष की उपस्थिति को भाँप लेते थे
हर प्रसाद जी
जिस भी विषय को छूते हैं उसे
द्वन्द्वात्मक विकास का हिस्सा बना देते है
निर्द्वन्द्व रूप से
वे कभी भी नहीं पडे द्वन्द्व में
हमेशा रहे निर्भ्रान्त और एकान्त ।
भले थे
ओजस्वी थे
पर सुन नहीं पाते थे बेचारे .. इसलिए सिर्फ़ बोलते थे
बहुत कम लोगों को पता है
कि चन्द किताबें पढकर ही उन्होंने लिख दी थी
अनन्त किताबें ...
काश ! किसी ने करवा दिया होता उनके कानों का ईलाज
तो सुन पाते वे भी समय का सच
कह्ते हैं,
बीस हजार पृष्ठ लिखने बावज़ूद भी
वे मरे असंतुष्ट
कि कह नहीं पाए अपनी बात
2 comments:
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
extra ordinary...
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