सबसे आखिर में आई है बारी
कलम उठाने की
जबकि चुक गया मैं, चुक गई मेरी दुनिया ।
मैं,
कहने को एकान्त पथिक था
अनचिन्हे देश में, अनबूझी भाषा में
मैं,
मानव भी था, पशु भी था
दुर्जन भी था, सज्जन भी था
मेरी इन स्वीकारोक्तियों में पड गई पपडी
पराग की या गर्द की
जिसे मैंने चाहा नहीं, सराहा नहीं ...
मैं अनफिट भी था
बार बार सुधार करवाता अपने साँचे में
अलंकार से रस तक की यात्रा
यौन पीडा
या यौन सुख .. शब्दों में खो गया
मैं सहलाता हुआ मनके को
गाता हुआ गान-कीर्तन
चलता ही आया अब तक
हर देश में,
हर प्रहर में मिला .. मिलता रहा
लगता रहा हमराही सा
आ ही गई झपकी या सुला दिया गया मैं
मेरा मानव भूल चुका है
फिर भी, तन्द्रा टूटने के बाद
करनी होती है तैयारी
फिर से चलने की -
न जाने कहां जाना हो इसबार
ओ मेरे प्रच्छन्न मित्र !
मेरे छद्म हमराही से, एक बार भी, पूछो तो सही
क्यों है इतना विष
इसकी साँसों में, इसके स्पर्श में ...
अब, जबकि मैं रहा नहीं
तब आई है बारी
कलम उठाने की
मेरे अस्थि-पंजर से
छोटा इतिहास बनाने की ..
कलम उठाने की
जबकि चुक गया मैं, चुक गई मेरी दुनिया ।
मैं,
कहने को एकान्त पथिक था
अनचिन्हे देश में, अनबूझी भाषा में
मैं,
मानव भी था, पशु भी था
दुर्जन भी था, सज्जन भी था
मेरी इन स्वीकारोक्तियों में पड गई पपडी
पराग की या गर्द की
जिसे मैंने चाहा नहीं, सराहा नहीं ...
मैं अनफिट भी था
बार बार सुधार करवाता अपने साँचे में
अलंकार से रस तक की यात्रा
यौन पीडा
या यौन सुख .. शब्दों में खो गया
मैं सहलाता हुआ मनके को
गाता हुआ गान-कीर्तन
चलता ही आया अब तक
हर देश में,
हर प्रहर में मिला .. मिलता रहा
लगता रहा हमराही सा
आ ही गई झपकी या सुला दिया गया मैं
मेरा मानव भूल चुका है
फिर भी, तन्द्रा टूटने के बाद
करनी होती है तैयारी
फिर से चलने की -
न जाने कहां जाना हो इसबार
ओ मेरे प्रच्छन्न मित्र !
मेरे छद्म हमराही से, एक बार भी, पूछो तो सही
क्यों है इतना विष
इसकी साँसों में, इसके स्पर्श में ...
अब, जबकि मैं रहा नहीं
तब आई है बारी
कलम उठाने की
मेरे अस्थि-पंजर से
छोटा इतिहास बनाने की ..
3 comments:
badhiya bhavyakti ..
खूबसूरत रचना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, सुन्दर भाव, बधाई .
कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .
Post a Comment