मेरे उस अकेलेपन में
कविता जब नहीं ले पाती है कोई शक्ल
मच जाता है हाहाकार
और लाचार हो उठता है एकान्त
यूँ कि अनजान देश
और भटका हुआ भूखा आदमी
भीड भरे बाज़ार में हाक लगाकर बेचता है कोई
ख्नानदानी दवा
कोई सस्ती हो रही सब्जी
कोई हर एक माल दस रुपए में
और मेरा कवि
वहाँ भी अकेला, कोने में
कि शक्ल बनी नहीं कविता की
शाम को घर पहुँचने पर
मुझे देखकर पत्नी मुस्कुराती है
मेरा रोम रोम हल्का हो जाता है, मानो रुई का फ़ाहा ..
मेरे हाहाकार को मिलता है एक विराम
अनिवार्य सा
मिल जाती है एक मुकम्मिल शक्ल
कविता को
पिघल जाता है मेरा अकेलापन ..
नहीं रह जाती है कोई जरूरत
किसी भी छोटे बडे परिचय की
राष्ट्र - धर्म- जाति - गोत्र - व्यवसाय से अतीत
एक दुनिया ...
मेरी और सिर्फ़ मेरी
बढ जाती है चमक चाँद की
अनायास, आ जाती है गंध हवाओं में
झिंगुर गाने लगते हैं ठुमरी
कि मेरी कविता हो जाती है तरल
पाने लगती है शक्ल
मनमाफ़िक
मेरा कवि, अचानक, हो उठता है इंसान
जो कभी नहीं था अकेला
कविता जब नहीं ले पाती है कोई शक्ल
मच जाता है हाहाकार
और लाचार हो उठता है एकान्त
यूँ कि अनजान देश
और भटका हुआ भूखा आदमी
भीड भरे बाज़ार में हाक लगाकर बेचता है कोई
ख्नानदानी दवा
कोई सस्ती हो रही सब्जी
कोई हर एक माल दस रुपए में
और मेरा कवि
वहाँ भी अकेला, कोने में
कि शक्ल बनी नहीं कविता की
शाम को घर पहुँचने पर
मुझे देखकर पत्नी मुस्कुराती है
मेरा रोम रोम हल्का हो जाता है, मानो रुई का फ़ाहा ..
मेरे हाहाकार को मिलता है एक विराम
अनिवार्य सा
मिल जाती है एक मुकम्मिल शक्ल
कविता को
पिघल जाता है मेरा अकेलापन ..
नहीं रह जाती है कोई जरूरत
किसी भी छोटे बडे परिचय की
राष्ट्र - धर्म- जाति - गोत्र - व्यवसाय से अतीत
एक दुनिया ...
मेरी और सिर्फ़ मेरी
बढ जाती है चमक चाँद की
अनायास, आ जाती है गंध हवाओं में
झिंगुर गाने लगते हैं ठुमरी
कि मेरी कविता हो जाती है तरल
पाने लगती है शक्ल
मनमाफ़िक
मेरा कवि, अचानक, हो उठता है इंसान
जो कभी नहीं था अकेला
2 comments:
ek hi shabd kehna chahoungi is kavita ke liye
Beautiful !
वाह, क्या सुन्दर कविता लिखी है आपने.
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