नैन हँसे पुनि बैन कहे, एहि रीति खिलाबत है सजनी।
मन नन्द भले आनन्द भए मन झंकृत झन झन नाद बनी।
गति मंथर यौवन ज्यों बिकसै तन क्षीर पयोधि में दो नलनी।
बनफूल खिले इन झाडन में मनकुंजन नैनन रार ठनी ॥
अधराधर कोमल ज्यों किसलै, अधरोष्ठ प्रकम्पित पावन को
छन में अतिजीवन यौबन को सहचार मिले मनभावन को
अस्पर्स मिले तो गलै हिम वे जिन ताप जलावन आगन को
दृग मूँदि उसास भरै यूँ कहे रुत आयो ज्यूँ सेज सुलावन को
मन नन्द भले आनन्द भए मन झंकृत झन झन नाद बनी।
गति मंथर यौवन ज्यों बिकसै तन क्षीर पयोधि में दो नलनी।
बनफूल खिले इन झाडन में मनकुंजन नैनन रार ठनी ॥
अधराधर कोमल ज्यों किसलै, अधरोष्ठ प्रकम्पित पावन को
छन में अतिजीवन यौबन को सहचार मिले मनभावन को
अस्पर्स मिले तो गलै हिम वे जिन ताप जलावन आगन को
दृग मूँदि उसास भरै यूँ कहे रुत आयो ज्यूँ सेज सुलावन को
2 comments:
दोनों पद सुन्दर हैं!
सुन्दर
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