बेस्वाद लगता था उस भेडिये को
लहू और मांस
तब से
जब से उसे आंसुओं के स्वाद का चस्का लगा
अब वह
खाने के मामले में कलचर्ड हो गया
अक्सर कहता है वक्तव्यों में
बिना यातना और आंसू के मौत
तो छल है, धोखा है
पीठ पर वार है
सचमुच अत्याचार है
[ ठठाकर हंसता है लाल दाँत दिखाते हुए]
वे मेरे शत्रु तो नहीं
शिकार है
सोचा तो पाया कि मुझे उनसे प्यार है
नई पीढी के शिक्षित भेडिए
अलग अलग करना जानते है
नमक को , खून, पसीने और आँसू के
आंसू के नमक का स्वाद
भेडिया कई दिनों तक याद रखता है
1 comment:
sunder rachna namak ka swaad
http://guzarish6688.blogspot.in/
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