Saturday, November 17, 2012

ट्रेन पर बिठाते हुए बाबू बोले

ट्रेन पर बिठाते हुए बाबू बोले
सुबह होगी दिल्ली में
और सचमुच हुआ भी ऐसा ही

रात भर
रात चलती रही
ट्रेन चलती रही
मैं चलता रहा
सुबह मिली दिल्ली में
ट्रेन पहुँची
मैं पहुँचा
हजारों मुसाफ़िर पहुँचे
सभी मिले
दिल्ली से
दिल्ली की सुबह से

लेकिन रात नहीं पहुँची थी तब
वह गायब हो गई
हमें पहुँचाकर
हमारे गाँव की रात नहीं आ पाई
दिल्ली
दिल्ली की सुबह
गाँव की सुबह जैसी नहीं होती
वहाँ सूरज निकलता है बगीचे से
यहाँ इमारतों के पीछे से

लौट गई होगी गाँव की रात
अपनी उस गाँव वाली सुबह के पास