ट्रेन पर बिठाते हुए बाबू बोले
सुबह होगी दिल्ली में
और सचमुच हुआ भी ऐसा ही
रात भर
रात चलती रही
ट्रेन चलती रही
मैं चलता रहा
सुबह मिली दिल्ली में
ट्रेन पहुँची
मैं पहुँचा
हजारों मुसाफ़िर पहुँचे
सभी मिले
दिल्ली से
दिल्ली की सुबह से
लेकिन रात नहीं पहुँची थी तब
वह गायब हो गई
हमें पहुँचाकर
हमारे गाँव की रात नहीं आ पाई
दिल्ली
दिल्ली की सुबह
गाँव की सुबह जैसी नहीं होती
वहाँ सूरज निकलता है बगीचे से
यहाँ इमारतों के पीछे से
लौट गई होगी गाँव की रात
अपनी उस गाँव वाली सुबह के पास
सुबह होगी दिल्ली में
और सचमुच हुआ भी ऐसा ही
रात भर
रात चलती रही
ट्रेन चलती रही
मैं चलता रहा
सुबह मिली दिल्ली में
ट्रेन पहुँची
मैं पहुँचा
हजारों मुसाफ़िर पहुँचे
सभी मिले
दिल्ली से
दिल्ली की सुबह से
लेकिन रात नहीं पहुँची थी तब
वह गायब हो गई
हमें पहुँचाकर
हमारे गाँव की रात नहीं आ पाई
दिल्ली
दिल्ली की सुबह
गाँव की सुबह जैसी नहीं होती
वहाँ सूरज निकलता है बगीचे से
यहाँ इमारतों के पीछे से
लौट गई होगी गाँव की रात
अपनी उस गाँव वाली सुबह के पास
2 comments:
वाह, बहुत सुन्दर रचना
बढ़िया है
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